3356
पलकोंमें आँसू
और,
दिलमें
दर्द सोया हैं,
हँसने वालोंको क्या
पता,
रोनेवाला
किस कदर रोया
हैं...
ये तो बस
वो ही जान
सकता हैं,
मेरी
तन्हाईका आलम,
जिसने ज़िंदगीमें...
किसीको पानेसे
पहले खोया हो !
3357
आखिर किस कदर
खत्म कर सकते
हैं,
हम उनसे रिश्ते...
जिनको सिर्फ महसूस करनेसे,
हम दुनियाँ भूल जाते.......!
3358
आसान इस कदर
हैं,
समझ लो
मेरा पता...
बस्तीके बाद
पहला,
जो वीराना
आएगा...!
3359
किस कदर बेदर्द,
हो गया हैं ये इंसान;
टूटते तारेसे
कहे,
पूरे करदे मेरे अरमान.......!
3360
जिधर देखो उधर,
शायर बिखरे पड़े हैं...
ए इश्क, देख
तूने किस कदर...
तबाही मचा रखी
हैं.......!