29 September 2018

3341 - 3345 दिल ज़िंदगीअंदाज मुलाकात रिश्ता तरस इन्सान बेबसी आहिस्ता मंज़िल शायरी


3341
हम मरेगें भी तो,
उस अंदाजसे...
जिस अंदाजमें लोग,
जीनेको भी तरसते हैं.......! 

3342
कुछ रिश्तोमें,
इन्सान अच्छा लगता हैं,
और कुछ इन्सानोंसे,
रिश्ता अच्छा लगता हैं...


3343
दिल साफ करके,
मुलाकातकी आदत डालो;
धूल हटती हैं तो,
आईने भी चमक उठते हैं.......

3344
समंदर अपनी बेबसी,
किसीसे कह नहीं सकता;
हजारों मील तक फैला हैं,
फिर भी बह नहीं सकता...

3345
ज़िंदगी,
बहुत तेज़ हैं रफ़्तार तेरी,
थोड़ा आहिस्ता चल,
समझने तो दे...
ये पड़ाव हैं या हैं मंज़िल मेरी.......

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