18 September 2018

3291 - 3295 यार मजबूर दर्द वजह शकल बेवफ़ाई इल्ज़ाम खामोश इज़हार लब बादल हुस्न शायरी


3291
खुदको इतना मजबूर कभी पाया,
के तेरा दर्द भी ना बांट सकु...
खुदा कुछ ऐसा कर,
मेरे यारका दर्द बस मेरे नाम कर...!

3292
मत पूँछ हमसे यूँ सारी रात,
जागने कि वजह,  चाँद...
तेरा ही हमशकल हैं वो जो,
हमे सोने नहीं देती.......!

3293
जानकर भी वो मुझे जान ना पाए,
आज तक वो मुझे पहचान ना पाए;
खुद ही कर ली बेवफ़ाई हमने,
ताकि उनपर कोई इल्ज़ाम ना आए...!!!

3294
चलो ... खामोश रहते हैं,
तब तक ... जब तक...
इज़हार लबोंपें,
ख़ुद ना चलके आए...

3295
किसका चेहरा अब मैं देखूं...?
चाँद भी देखा...! फूल भी देखा...!
बादल बिजली...! तितली जुगनूं...!
कोई नहीं हैं ऐसा...! तेरा हुस्न हैं जैसा...!!!

No comments:

Post a Comment