3246
कितनी कशिश हैं,
इस मोहब्बतमें;
लोग रोते हैं मगर,
फिर भी
करते हैं.......!
3247
न जाने क्या
कशिश हैं,
तुम्हारी इन
मदहोश आँखोंमें;
नज़रअंदाज़
जितना करो,
नज़र
उसपें ही
पड़ती हैं.......
3248
लोग कहते हैं
पिये बैठा हूँ
मैं,
खुदको मदहोश
किये बैठा हूँ
मैं;
जान बाकी हैं वो भी ले
लीजिये,
दिल तो पहले
ही दिये बैठा
हूँ मैं...!
3249
सपनोंकी दुनियामें,
हम खोते
चले गए;
मदहोश न थे
पर,
मदहोश होते
चले गए;
ना जाने क्या
बात थी,
उस
चेहरेमें;
ना चाहते हुए भी...
उसके होते चले
गए.......।
3250
करने लगे हिसाब-ए-ज़िंदगी,
तो रो बैठे;
गिनते रहे सालोंको,
और लम्होंको खो बैठे.......
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