4 September 2018

3246 - 3250 ज़िंदगी मोहब्बत दुनिया कशिश नज़र अंदाज़ हिसाब मदहोश आँख लम्हा शायरी


3246
कितनी कशिश हैं,
इस मोहब्बतमें;
लोग रोते हैं मगर,
फिर भी करते हैं.......!

3247
जाने क्या कशिश हैं,
तुम्हारी  इन मदहोश आँखोंमें;
नज़रअंदाज़ जितना करो,
नज़र उसपें ही पड़ती हैं.......

3248
लोग कहते हैं पिये बैठा हूँ मैं,
खुदको मदहोश किये बैठा हूँ मैं;
जान बाकी हैं वो भी ले लीजिये,
दिल तो पहले ही दिये बैठा हूँ मैं...!

3249
सपनोंकी दुनियामें,
हम खोते चले गए;
मदहोश थे पर,
मदहोश होते चले गए; 
ना जाने क्या बात थी,
उस चेहरेमें;
ना चाहते हुए भी...
उसके होते चले गए.......।

3250
करने लगे हिसाब--ज़िंदगी,
तो रो बैठे;
गिनते रहे सालोंको,
और लम्होंको खो बैठे.......

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