20 September 2018

3301 - 3305 मोहब्बत इश्क़ जिंदगी साँस पल चाँद दर्द खैरियत उम्र नज़र आज़ाद सुकून शायरी


3301
रातभर भटका हैं मन,
मोहब्बतके पते पे...
चाँद कब सूरजमें बदल गया,
पता नहीं चला.......!

3302
जो कट गयी,
वो तो उम्र थी साहब...
जिसे जी लिया,
उसे जिंदगी कहिए...
कभी साथ बैठो,
तो कहूं दर्द क्या हैं...
अब यू दूरसे पूछोे,
तो खैरियत ही कहेंगे...!



3303
कोई एक पल हो,
तो नज़रें चुरा लें हम;
ये तुम्हारी याद तो,
साँसोंकी तरह आती हैं...!

3304
सुकून गिरवी हैं उसके पास...
मोहब्बत क़र्ज़ ली थी जिससे...!

3305
सौ बार बंद--इश्क़से,
आज़ाद हम हुए;
पर क्या करें कि,
दिल ही अदू हैं फ़राग़का...!
[ बंद--इश्क़ : प्यारकी कैद
अदू : दुश्मन, फ़राग़ : आझादी ]

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