25 September 2018

3326 - 3330 मोहब्बत इश्क ग़म एहसास लम्हे नींदे फ़क़ीर सदियाँ कीमत वसूल मजे ख़ास शायरी


3326
आओ कभी मेरे पास यूँकी,
आनेमें लम्हे और...
जानेमें सदियाँ बीत जाये...!

3327
लाओ, वो गिरवी रखी मेरी,
नींदे वापस कर दो...
मोहब्बत नहीं दे सकते तो,
कीमत क्यूँ वसूलते हो.......?

3328
जिनका ये एलान हैं,
की वो मजेमें हैं...
या तो वो फ़क़ीर हैं
या फिर नशेमें हैं...!

3329
इश्कसे बचिये जनाब,
सुना हैं धीमी मौत हैं ये !

3330
देखकर तुमको अकसर,
हमें एहसास होता हैं;
कभी कभी ग़म देने वाला भी,
कितना ख़ास होता हैं.......!

No comments:

Post a Comment