6 September 2018

3256 - 3260 दिल प्यार इत्तेफ़ाक़ फुर्सत महफ़िल वक्त ख्वाहिश पल चाहत ज़ुल्फ़ बारिश क़तरा शायरी


3256
फुर्सत निकालकर आओ,
कभी मेरी महफ़िलमें;
लौटते वक्त बसाकर ले जाओगे,
मुझे अपने दिलमें.......!

3257
वही पुरानी ख्वाहिश,
वही पुरानी जिद...
चाहिए एक छोटासा पल,
और साथ तुम सिर्फ तुम.......!

3258
चाहत हैं, किसी चाहतको पानेकी,
चाहत हैं, चाहतको आज़मानेकी,
वो चाहे हमें, चाहे ना चाहे,
पर चाहत हैं,
उनकी चाहतमें मिट जानेकी...!!!

3259
ना दिलसे होता हैं,
ना दिमागसे होता हैं;
ये प्यार तो इत्तेफ़ाक़से होता हैं...
पर प्यार करके प्यार ही मिले,
ये इत्तेफ़ाक़ भी...
किसी-किसीके साथ होता हैं...!

3260
बूँद बूँद टपकती हैं,
तेरी ज़ुल्फ़ोंसे बारिशें;
क़तरा क़तरा गिरती हैं,
मेरे छलनी दिलसे ख़्वाहिशें।

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