27 September 2018

3336 - 3340 मोहब्बत ज़माने जमीं खजाने फितरत शामिल सलीका सादगी रात रौशन अदब शायरी


3336
अदबसे झुक जाना,
हमारी फितरतमें शामिल था;
मगर हम क्या झुके,
लोग खुदा हो गए...!

3337
सलीका, सादगी, सब...
आजमाकर ये समझ आया;
बहुत नुकसान होता हैं,
अदबसे पेश आनेमें...!

3338
अदबसे उठाना,
बुझे दीयेको...
सारी रात उसने जलकर,
तुम्हारी रात रौशनकी हैं...!

3339
मोहब्बत करने चला हैं,
तो कुछ अदब भी सीख लेना;
इसमें हंसते साथ हैं,
पर रोना अकेले ही पड़ता हैं.......

33340
इल्मो अदबके सारे खजाने गुजर गए,
क्या खूब थे वो लोग पुराने गुजर गए;
बाकी हैं जमींपें फकत आदमीकी भीड़
इन्सांको मरे हुए तो ज़माने गुजर गए...

No comments:

Post a Comment