29 September 2018

3346 - 3350 ज़िन्दगी तराजू तरक्की दावा बेकार वक्त किताबों कमबख्त नशा ठोकर दबदबा हुकूमत शायरी


3346
सबको उसी तराजूमें तोलिए,
जिसमें खुदको तोलते हो;
फिर देखना लोग उतने भी बुरे नहीं होते,
जितना हम समझते हैं.......!

3347
ज़िन्दगीको इतना,
सस्ताभी मत बनाओ दोस्तों,
के दो कौड़ीके लोग,
खेल कर चले जाये.......!

3348
गिर रहा हैं दिन दिन,
इंसानियतका स्तर...
और इंसानका दावा हैं,
कि हम तरक्कीपर हैं.......!

3349
"बेकार ज़ाया किया,
वक्त किताबोंमें...
सारे सबक तो कमबख्त,
ठोकरोंसे मिले हैं......."

3350
ये दबदबा, ये हुकूमत,
ये नशा, ये दौलते,
सब किरायेदार हैं,
घर बदलते रहते हैं.......!

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