3886
किसीने मुझसे कहाँ,
आपकी आँखें
बहुत खूबसूरत हैं...!
मैने कहाँ, ये
रोज आपका...
ख्वाब
जो देखती हैं.......!
3887
हैं आरजु एक
रात,
तुम आओ
मेरे ख्वाबमें...
बस दुवा हैं उस रातकी,
कभी सुबह ना
हो.......!
3888
नींद भी बुरा
मानने लगी हैं,
जबसे खुली
पलकोंसे,
तुम्हारे
ख्वाब देखने लगे
हैं.......!
3889
उस रात गरीब
माँने,
यह
कहके बच्चोंको सुला दिया;
फ़रिश्ते
ख्वाबमें आते हैं,
रोटियाँ लेकर.......
3890
चादरसे पैर,
तभी
बाहर आते हैं...
जब 'उसूलों' से बड़े,
'ख्वाब' हो जाते
हैं.......