3841
बिना नक्शेके भी
पंछी,
पहुँच जाते हैं
अपने मुकाम तक...
एक हम इंसान
हैं कि,
दिलसे दिलतक भी पहुँचनेमें,
नाकाम रहते हैं.......
3842
फ़क़त रेशमसी
गांठे थी,
ज़रासा खोल लेते
तुम ।
अगर दिलमें
शिकायत थी,
जुबांसे बोल देते
तुम...।।
3843
तेरी यादोंके जो
आखिरी थे निशान,
दिल तड़पता रहा, हम
मिटाते रहे...
ख़त लिखे थे
जो तुमने कभी
प्यारमें,
उसको पढते रहे
और जलाते रहे.......
3844
आज फिर ए
तन्हाई,
लग जा
गले;
के तुझसे लिपटके
रोनेको,
बहुत
दिल हैं.......!
3845
कहाँ पूरी होती
हैं,
दिलकी सारी
ख्वाहिशें...
कि बारिश भी हो,
यार भी हो,
और पास भी
हो.....
No comments:
Post a Comment