9 January 2019

3746 - 3750 दिमाग कसूर ग़ज़ब वजूद मौजूद फ़ना महफ़िल मेहमान कदम दीवानगी कातील मुस्कान दिल शायरी


3746
दिमागपर जोर डालकर गिनते हो,
गलतियाँ मेरी,
कभी दिलपर हाथ रखकर पूछना,
कि कसूर किसका था.......

3747
ग़ज़ब हैं मेरे दिलमें,
तेरा वजूद,
मैं ख़ुदसे दूर और,
तू मुझमें मौजूद।

3748
मैने भी दिलके दरवाजेपर,
चिपका दी हैं एक चेतावनी...
फ़ना होनेका दम रखना,
तभी भीतर कदम रखना...!

3749
ये अपनी ही महफ़िलमें भी,
मेहमान हो जाता हैं...
तुझे ना देखे तो दिल अक्सर,
परेशान हो जाता हैं.......!

3750
कैसे संभालें हम,
अब अपने आपको  दिल नशीं;
दीवानगी बढ़ा देती हैं,
तेरी कातील मुस्कान भी...!

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