3 January 2019

3716 - 3720 जहाँ तड़प मुश्किल महफ़िल सब्र क़रार आँख क़ातिल दुश्मन दगा खुशबू जख्म दिल शायरी


3716
यूँ हर पल हमें सताया कीजिये,
यूँ हमारे दिलको तड़पाया कीजिये 
क्या पता कल हम हों हों इस जहाँमें...
यूँ नजरें हमसे आप चुराया कीजिये

3717
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो थी,
जैसी अब हैं तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो थी 
ले गया छीनके कौन आज तेरा सब्र--क़रार,
बेक़रारी तुझे दिल कभी ऐसी तो थी 
उसकी आँखोंने ख़ुदा जाने किया क्या जादू,
के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो थी 
चश्म--क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन,
जैसे अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो थी 
बहादुर शाह ज़फ़र

3718
नाम तेरा ऐसे लिख चुके हैं,
अपने वजूदपर...
कि तेरे नामका भी कोई मिल जाए,
तो भी दिल धड़क जाता हैं.......!

3719
जब किसीकी कमीयाँ भी,
अच्छी लगने लगे ना...
तो मान ही लीजिये,
ये दिल दगाबाजी कर गया...!

3720
मेरे आँसुओंसे भी आती हैं खुशबू,
जबसे इन आँखोंमें तुझे बसाया हैं...
जख्म भी मीठे लगते हैं,
जबसे तूने ये मेरा दिल चुराया हैं...!

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