6 May 2017

1295


बेशक अपनी मंजिल तक जाना है,
लेकिन जहाँ से अपना दोस्त ना दिखे;

वो ऊँचाई किस काम की ...!

1294


लो खत्म हुई,
रंग-ऐ-गुलाल की शोखियां;

चलो यारो फिर,
बेरंग दुनिया में लौट चले . . . ।

1293


मुफ्त में नहीं आता,
यह शायरी का हुनर…
इसके बदले ज़िन्दगी हमसे,

हमारी खुशियों का सौदा करती है…!

1292


कभी बंद आँखों से पढ़ लेती थी,
तुम मेरे साये की आवाज को…
आज भरी महफ़िल में,
मेरे नाम को अनसुना सा कर दिया...

1291


जिंदगी देने वाले, मरता छोड़ गये;
अपनापन जताने वाले तन्हा छोड़ गये;
जब पड़ी जरूरत हमें अपने हमसफर की;

वो जो साथ चलने वाले रास्ता मोड़ गये।

1290


"तेरी चाहत में हम ज़माना भूल गये,
किसी और को हम अपनाना भूल गये,
तुम से मोहब्बत हैं बताया सारे जहाँ को,

बस एक तुझे ही बताना भूल गये......"

1289


गलती इतनी हुई की
तुझें जान से ज्यादा चाहने लगे हम
क्या पता था की मेरी इतनी परवाह

तुझें लापरवाह कर देगी!

1288


हम इतने बदनाम है कि
लडकिया हमें खुद फोन लगाकर बोलती है
आप हमारी गली मे मत आया करो
लोग शक बहुत करते है . . .

1287


होली के दिन तू मुझे मिलना
ज़रूर ऐ ज़िन्दगी।

तुझे खुशियो के रंगो से
रँगने की ख्वाहिश है ।।

1286


संभल कर रहना जीवन में
उन लोगों सॆ दोस्तों ..,

जिनके दिल के अंदर भी
दिमाग रहता हे ..!!

3 May 2017

1285


न जाने कितनी अनकही बातें,
कितनी हसरतें साथ ले जाएंगे...
लोग झूठ कहते हैं कि
खाली हाथ आये थे,
खाली हाथ जाएंगे . . . 

1283 - 1284


तु इस कदर मुझे,
अपने करीब लगता है ।
तुझे अलग से जो सोचूं तो,
अजीब लगता है . . . ।

परवीन शाकिर

ज़ाने क़ितनी अनक़हीं बातें,
क़ितनी हसरतें साथ ले ज़ाएंग़े...
लोग़ झूठ क़हते हैं क़ि,
ख़ाली हाथ आये थे,
ख़ाली हाथ ज़ाएंग़े......

1282


"कितनी अजीब बात है;
जब हम गलत होते है तो समझौता चाहते हैं...,
और दुसरे गलत होते है तो;

हम न्याय चाहते हैं...!

1281


हाल तो पुछ लूं तेरा...
पर डरता हूँ आवाज से तेरी,
जब जब सुनी है...

कम्बख्त मोहोब्बत ही हुई है...!

2 May 2017

1280


जिंदगीने कैसी खिंची
यह तसवीर हमारी।
छुपा न सकी वो,

हॅसते हुए पलकोंके, पिछे के आंसूभी ।।

1279


किस्मत की किताब तो
खूब लिखी थी मेरे रब ने,

बस वही पन्ना गुम था . . .
जिसमे तेरा जिक्र था।

1278


तेरी मोहब्बत भी,
किराये के घर की तरह थी . . .

कितना भी सजाया,,,
पर मेरी न हो सकी...

1277


दिल तोड़ के जाने वाले सुन...
दो और भी रिश्तें बाक़ी हैं;
एक सांस की डोरी अटकी है,

एक प्रेम का बंधन बाक़ी है...!

1276


दीवार क्या गिरी
मेरे कच्चे मकान की…

लोगों ने मेरे आँगन से
रास्ते बना लिए…

1275


ए बुरे वक्त,
जरा आदब से पेश आ...
वक्त ही कितना लगता है ,

वक्त बदलने में !