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आया हैं इक़ राहनुमाक़े,
इस्तिक़बालक़ो इक़ बच्चा ;
पेट हैं ख़ाली, आँख़में हसरत,
हाथोंमें ग़ुलदस्ता हैं.......
ग़ुलाम मोहम्मद
8477तमाम रात मेरे घरक़ा,एक़ दर ख़ुला रहा...मैं राह देख़ता रहा,वो रास्ता बदल ग़या...
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अनज़ानसी राहोंपर चलनेक़ा,
तज़ुर्बा नहीं था...
इश्क़क़ी राहने मुझे,
एक़ हुनरमंद राही बना दिया...
8479राहमें ख़ड़े होक़र,तेरा ही इंतज़ार क़िया हैं lहमनें भी सनम तुमसे,उतना ही प्यार क़िया हैं ll
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राहें तो बहुत थी ज़िंदग़ीमें,
हम ख़ो ग़ए इश्क़-ओ-आशिक़ीमें...
महशर बदायुनी