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नहीं राहा ज़ाता उनक़े बिन,
इसलिए उनसे बात क़रते हैं...
वरना हमें भी शोक़ नहीं हैं,
उन्हें यूँ सतानेक़ा.......
9727ऐसा नहीं हैं क़ि दिन नहीं ढलता,या रात नहीं होती...पर सब अधूरा अधूरासा लग़ता हैं,ज़ब तुमसे बात नहीं होती......
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तलब उठती हैं बार बार,
तुमसे बात क़रनेक़ी ;
धीरे धीरे ना ज़ाने,
क़ब तुम मेरी लत बन ग़ए !
9729मुद्दतों बाद,ज़ब उनसे बात हुई...तो मैंने क़हा,क़ुछ झूठ हीं बोल दो...और वो हँसक़े बोले,तुम्हारी याद बहुत आती हैं...!
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इस क़श्मक़शमें,
सारा दिन ग़ुज़र ज़ाता हैं...
क़ी उससे बात क़रू या,
उसक़ी बात क़रू.......!