11 July 2023

9696 - 9700 ज़िंदग़ी लाज़वाब लब्ज़ ख़ामोशी हंग़ामा बात शायरी

 
9696
चुप थे तो चल रहीं थी,
ज़िंदग़ी लाज़वाब...
ख़ामोशियाँ बोलने लगीं,
तो बवाल हो ग़या......

9697
यार बेशक़ एक़ हो,
मग़र ऐसा हो...
ज़ो लब्ज़ोसे ज़्यादा,
ख़ामोशीक़ो समझे...!

9698
वो हंग़ामा ग़ुज़र ज़ाता उधरसे,
मग़र रस्तेमें ख़ामोशी पड़ी हैं ll
                                 लियाक़त ज़ाफ़री

9699
हाथपर हाथ रख्ख़ा उसने,
तो मालूम हुआ...
अनक़ही बातक़ो,
क़िस तरह सुना ज़ाता हैं...

9700
मेरे दिलमें तो आज़ भी,
तुम मेरे ही हो...!
ये और बात हैं क़ी,
हाथक़ी लक़ीरोंने दगा क़िया ll

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