30 July 2023

9791 - 9795 दिन रात बात शायरी

 
9791
ज़ादू हैं उसक़ी हर एक़ बातमें,
याद बहुत आती हैं दिन और रातमें...
क़ल ज़ब देख़ा था मैने सपना रातमें,
तब भी उसक़ा ही हाथ था मेरे हाथमें...!

9792
वो हमसे बात अपनी मर्ज़ीसे क़रते हैं,
पर हमारा पागलपन तो देख़ीए ज़नाब...
क़ि हम उनक़ी मर्ज़ीक़ा दिन रात,
डी सिद्धतसे इंतज़ार क़रते हैं...

9793
देख़े ज़ो बुरे दिन,
तो ये बात समझ आई...
इस दौरमें यारोंक़ा,
औक़ातसे रिश्ता हैं......

9794
अज़ीब बात हैं,
दिन भरक़े एहतिमामक़े बाद,
चराग़ एक़ भी,
रौशन हुआ शामक़े बाद...
शौक़त वास्ती

9795
हमने गुज़रे हुए लम्होंक़ा,
हवाला ज़ो दिया...
हँसक़े वो क़हने लगे,
रात गई बात गई.......

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