8 July 2023

9686 - 9690 ज़ुर्रत ख़्याल उम्मीद गुफ्तगू ख़ामोशी शायरी


9686
ख़ामोशी भी अच्छी हैं तेरी,
एक़ उम्मीद रह ज़ाती हैं...
तेरे ना क़हनेसे,
तेरा क़ुछ ना क़हना हीं ठीक़ हैं...!


9687
फ़िर लबोंने ज़ुर्रत क़ी,
क़ुछ क़हने क़ी...
फ़िर ख़ामोशीने अपना,
रुआब दिख़ाया.......


9688
लफ्ज़ तो सारे,
सुने सुनाये हैं l
अब तु मेरी ख़ामोशीमें,
ढुँढ ज़िक़्र अपना !


9689
क़ैसे मुमक़िन हैं,
ख़ामोशीसे फ़ना हो ज़ाऊँ...
क़ोई पत्थर तो नहीं हूँ,
क़ि ख़ुदा हो ज़ाऊँ.......


9690
चंद ख़ामोश ख़्याल,
और तेरी बातें...
ख़ुदसे गुफ्तगूमें,
गुज़र ज़ाती हैं रातें......

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