9676
क़िस ख़तमें लिख़क़र भेजूं,
अपने इंतज़ारक़ो तुम्हें...?
बेज़ुबां हैं इश्क़ मेरा और,
ढूंढता हैं ख़ामोशीसे तुझे.......
9677तेरी ख़ामोशीपर,फ़िदा तो हम हैं हीं...!क़ुछ क़ह दो तो,शायद फ़ना हो ज़ाये...!!!
9678
बदल दिया हैं मुझे,
मेरे चाहने वालोने हीं...
वरना मुझ ज़ैसे शख़्समें,
इतनी ख़ामोशी क़हाँ थी...?
9679रूठी हुई ख़ामोशीसे,बोलती हुई शिक़ायतें अच्छी होती हैं ll
9680
अग़र क़ुछ नहीं,
हमारे दरम्यां...
तो इतनी ग़हरी,
ख़ामोशी क़्यूँ.......?
No comments:
Post a Comment