9671
माना क़ी हमारे,
अल्फ़ाज़ चुभते हैं...
पर आपक़ी ख़ामोशी तो,
मार हीं देती हैं.......
9672मिलो क़भी इस ठंड़में,चायपर क़ुछ क़िस्से बूनेंग़े...तुम ख़ामोशीसे क़हना,और हम चुपचाप सुनेंग़े.......
9673
दावा क़रते थे,
हमारी ख़ामोशीक़ो पढ़नेक़ा..,.
और हमारे लफ्ज़ भी,
ना समझ सक़े.......
9674क़्यूँ लफ्ज़ ढूंढते हो,मेरी ख़ामोशीमें तुम...मेरी आँख़ोंमें देख़ो,तुमक़ो क़ई फ़साने मिलेंग़े.......!
9675
क़भी ख़ामोशी बोली उनक़ी,
क़भी शब्द-निःशब्द क़र ग़ए l
एक़ उनक़े साथ ज़ीनेक़ी ज़िद्दमें,
हम क़ई मर्तबा मर ग़ए ll
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