2496
किया हैं प्यार
जिसे हमने ज़िन्दगीकी तरह;
वो आशना भी
मिला हमसे अजनबीकी तरह;
किसे ख़बर थी
बढ़ेगी कुछ और
तारीकी;
छुपेगा वो किसी
बदलीमें चाँदनीकी तरह।
2497
हर बार यही
होता हैं मेरे
साथ,
हर एक रिश्ता
नयी चोट दे
जाता हैं!
2498
यूँ तो ए
ज़िन्दगी,
तेरे सफरसे शिकायते
बहुत थी...
मगर दर्द जब
दर्ज कराने पहुँचे,
तो कतारे बहुत थी...!
2499
तुमने अभी देखी
ही कहां हैं,
हमारी फूलों जैसी
वफ़ा...
हम जिसपर
खिलते हैं,
उसीपर मुरझा जाते
हैं.......
2500
ये ख़ामोशियाँ भी,
अजीब
रिश्ता निभाती हैं...
लब अक्सर खुलते हैं
,
पर कभी आवाज़
नहीं आती हैं.......