15 March 2018

2481 - 2485 मोहब्बत चेहरा नक़ाब वज़ह आँख याद फासले निशानी कहानी रिश्ते होठ जख्म शायरी



2481
ख़ुद छुपा सके,
वो अपना चेहरा नक़ाबमें;
बेवज़ह हमारी आँखोंपें,
इल्ज़ाम लग गया।

2482
सौदा कुछ ऐसा किया हैं,
तेरे ख़्वाबोंने, मेरी नींदोंसे,
या तो दोनों आते हैं,
या कोई नहीं आता...।

2483
याद रखते हैं हम,
आज भी उन्हें पहलेकी तरह;
कौन कहता हैं फासले,
मोहब्बतकी याद मिटा देते हैं।

2484
दिन बीत जाते हैं कहानी बनकर,
यादें रह जाती हैं निशानी बनकर,
पर रिश्ते हमेशा रहते हैं;
कभी होठोंकी मुस्कान बनकर,
तो कभी आँखोंका पानी बनकर...

2485
वक़्त नूरको बेनूर बना देता हैं ,
छोटेसे जख्मको नासूर बना देता हैं...!
कौन चाहता हैं अपनोंसे दूर रहना ,
पर वक़्त सबको मजबूर बना देता हैं...!

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