14 November 2018

3521 - 3525 दिल प्यार मुहोब्बत जुदाई तड़प मंज़ूर गम परछाई दर्द दवा मासूम रुसवा शायरी


3521
"जमानेसे नहीं तो तनहाई से डरता हुँ,
प्यारसे नहीं तो रुसवाईसे डरता हुँ;
मिलनेकी उमंग बहुत होती हैं,
लेकिन मिलनेके बाद तेरी जुदाईसे डरता हुँ।"

3522
काश वो समझते इस दिलकी तड़पको,
तो यूँ हमें रुसवा ना किया होता;
उनकी ये बेरुखी भी मंज़ूर थी हमें,
बस एक बार हमें समझ लिया होता |

3523
गमकी परछाईयाँ, यारकी रुसवाईयाँ,
वाह रे मुहोब्बत !
तेरे ही दर्द और तेरी ही दवाईयाँ

3524
मासूम मयखानों पर ही,
हुकूमत--रुसवा क्यों...?
शराबी आँखोपर भी,
पाबंदी चाहीए.......!

3525
ना कर दिलसे नाराज़गी...
ना रुसवा कर मुझे...
जुर्म बता... सज़ा सुना...
और किस्सा खत्म कर.......

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