26 November 2018

3581 - 3585 ज़िन्दगी ठोकर जवानी वक्त दर्द महफ़िल आशिक शराब वजह नशे परवेज़ मयखाने शायरी


3581
खाकर ठोकर ज़मानेकी,
फिर लौट आये मयखानेमें;
मुझे देखकर मेरे ग़म बोले,
बड़ी देर लगा दी आनेमें...!

3582
कहते हैं पीनेवाले,
मर जाते हैं जवानीमें...
हमने तो बुजुर्गोंको,
जवान होते देखा हैं मयखानेमें...!

3583
कुछ लोग सारी ज़िन्दगी,
इन्सान नहीं बन पाते...
और
कुछ लोग रोज़ मयखानेसे,
खुदा बनकर निकलते हैं...!

3584
हम तो डुबे रहते हैं,
हर वक्त आशिकीकी नशेमें आपके,
दिन देखते हैं  रात...
भूख लगती हैं  प्यास...
खुदा खैर करे उस शराबका,
बेवजह ही जो बदनाम हैं,
नशेकी परवेज़से.......!

3585
दर्दकी महफ़िलमें,
एक शेर हम भी अर्ज़ किया करते हैं...
ना किसीसे मरहम,
ना दुआओंकी उम्मेड किया करते हैं;
काई चेहरे लेकर लोग,
यहा जिया करते हैं;
हम इन आसूनाओको,
एक चेहरेके लिए पीया करते हैं...!

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