21 November 2018

3551 - 3555 प्यार पल ख्वाब सिलसिला आलम एहसास तन्हाई सिलसिला हुस्न आगोश हसरत तनहा शायरी


3551
अकेले तो हम,
पहले भी जी रहे थे;
ना जाने फिर क्यूँ,
तनहासे हो गए तुम्हारे जानेके बाद...!

3552
एक पलका एहसास बनकर आते हो तुम,
दुसरे ही पल ख्वाब बनकर उड़ जाते हो तुम,
जानते हो की लगता हैं डर तन्हाइयोंसे,
फिर भी बार बार तनहा छोड़ जाते हो तुम...।

3553
आ तुझे बाहों में भरके प्यार करुं मैं,
मिट जाने दो दोनोकी तनहाईका ये सिलसिला;
इस रातके आलममें मेरा इश्क जानेजा,
तेरे हुस्नके आगोशमें खोनेको हैं चला...
3554
माना की दूरियाँ,
कुछ बढ़सी गयीं हैं...
लेकिन तेरे हिस्सेका वक़्त,
आज भी तनहा गुजरता हैं...!

3555
अब तो हसरत ही नहीं,
किसीसे वफा पानेकी...
दिल इस कदर टूटा हैं की,
अब सिर्फ तनहायी अच्छी लगती हैं...!

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