24 November 2018

3566 - 3570 प्यास मेहबूब इश्क मयखाने नज़र जाम नशा गहराई यार नाकाम आँख बेख़ुदी शराब शायरी


3566
प्यास अगर शराबकी होती तो,
ना आता तेरे मयखानेमें…
ये जो तेरी नज़रोका जाम हैं,
कम्बख्त कहीं और मिलता ही नहीं...!

3567
ये इश्क भी नशा--शराब,
जैसा हैं यारों
करें तो मर जाएँ और,
छोडे तो किधर जाएँ...!

3568
अगर हैं गहराई,
तो चल डुबा दे मुझको…
शराब नाकाम रही,
अब तेरी आँखोकी बारी हैं l

3569
मिले जो मेहबूब तो,
शराब सा मिले…
कि बेख़ुदी ऐसी हो,
कि फिर होश रहे…!

3570
वो जो तुमने,
इक दवा बतलाई थी ना ग़मके लिए,
उससे ग़म तो जैसाका तैसा रहा,
बस हम शराबी हो गये ll

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