22 November 2018

3561 - 3565 दिल इश्क बात रूह मुलाक़ात कैद जंजीर हुनर दीवानगी फना गुरू तनहा शायरी


3561
कभी तिनके, कभी पत्त्ते,
तो कभी ख़ुश्बू उड़ा लाई;
हमारे पास तो आँधी भी,
कभी तनहा नहीं आई...।

3562
चलो,
कुछ बात करते हैं...
बिन बोले... बिन सुने...
एक तनहा मुलाक़ात करते हैं...!

3563
बिछड़ना हैं तो यूँ करो...
रूहसे निकल जाओ,
रही बात दिलकी...
तो उसे हम देख लेंगे !!!

3564
कोई जंजीर नहीं,
फिर भी कैद हूँ तुझमें...
नहीं मालुम था,
की तुझे ऐसा हुनर भी आता हैं...!

3565
फना हो जाऊँ तेरे इश्कमें,
तो गुरूर करना.......
ये असर नही तेरे इश्कका,
ये मेरी दीवानगीका हुनर हैं.......!

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