14 November 2018

3526 - 3530 दिल चाहत इश्क फरिस्ता ऐतबार कुदरत कत्ल गुनाहगार शायरी


3526
तेरी चाहतमें,
रुसवा यूँ सरे बाज़ार हो गये...
हमने ही दिल खोया और,
हम ही गुनाहगार हो गये...!

3527
हमने इश्ककी,
तो जहाँके गुनाहगार हो गए...
और वो दिल तोड़के जैसे,
फरिस्ता हो गई.......!

3528
इतनी मोहब्ब्त,
ना करना सिखा खुदा...
कि तुझसे जायदा मुझे,
उसपर ऐतबार हो जाए;
दिल तोड़कर जाए वो मेरा...
और तू मेरा गुनाहगार हो जाए...!

3529
अगर इश्क़ गुनाह हैं,
तो गुनाहगार हैं खुदा; 
जिसने बनाया दिल,
किसीपर आनेके लिए।

3530
हर शख्स गुनाहगार हैं,
'कुदरत' के कत्लमें...
ये हवाएं जहरीली,
यूँ ही नहीं हुईं.......

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