12 June 2019

4346 - 4350 आरजू तारा जरुरत आँख ख्वाब तमाम ख्वाहिश हसरत शायरी


4346
मेरी आरजू हमेशा यहीं होती हैं,
के तू मुझे समझे...
लोग वाह वाह करे,
ये हसरत नहीं हैं.......!

4347
आज फिर एक हसरत लेकर,
हम छतपर आये हैं...
कोई टूटता तारा दिखे,
और हम तुझे मांग ले...!

4348
वो मेरी हसरत थी,
मैं उसकी जरुरत था;
फिर क्या था,
जरुरत पूरी हो गई,
हसरत अधूरी रह गई...

4349
कुछ ख्वाहिशें, कुछ हसरतें,
अभी बाकी हैं...
टूटकर भी लगता हैं...
टूटना अभी बाकी हैं.......

4350
आँख खुली तो,
जाग उठी हसरतें तमाम;
उसको भी खो दिया,
जिसको पाया था ख्वाबमें...

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