23 June 2019

4401 - 4405 आवाज़ बातें जवाब वक़्त बेशक लब्ज़ अल्फाज़ मुकद्दमा ख़ामोश शायरी


4401
पहाड़ियोंकी तरह ख़ामोश हैं,
आजके रिश्ते भी...
जबतक इधरसे आवाज़ दो,
उधरसे आवाज़ नहीं आती.......

4402
अपने ख़िलाफ़ चल रही कई बातें,
बड़ी ख़ामोशीसे सुनते रहो...
उन्हे सही जवाब देनेकी,
सारी की सारी ज़िम्मेदारी वक़्तको दे रखो...

4403
यार बेशक एक हो,
मगर ऐसा हो... जो;
"लब्ज़ोसे ज्यादा
"ख़ामोशीको समझे।

4404
ज़ाया ना कर अपने अल्फाज़,
हर किसीके लिए;
बस ख़ामोश रहकर देख तुझे,
समझता कौन हैं.......!

4405
विधाताकी अदालतमें,
वक़ालत बडी न्यारी हैं...
तू ख़ामोश रहकर कर्म कर,
तेरा मुकद्दमा ज़ारी हैं.......

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