4386
शायरी समझते हो,
जिसे
तुम सब;
वो मेरी किसीसे,
अधूरी मुलाकात
हैं...
4387
मुझको करनी हैं एक मुलाकात,
तुमसे ऐसे जहाँमें...
जहां मिलकर फिर बिछड़नेका,
कोई बन्दिश-ए-रिवाज
न हो...!
4388
आप मत पूछिये,
क्या हमपे
सफ़रमें गुज़री
?
आज तक हमसे
हमारी,
मुलाकात
न हुई.......!
4389
कुछ तो सोचा
होगा कायनातने,
तेरे-मेरे रिश्तेपर...
वरना इतनी बड़ी
दुनियामें,
एक तुझसे ही मुलाकात
क्यों होती...!
4390
तेरे मिलनेसे कुछ,
ऐसी बात हो
गई...
कुछ भी नहीं
था पास मेरे,
और ज़िन्दगीसे मुलाकात
हो गई...!
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