15 June 2019

4361 - 4365 मसरूफ़ ख़बर ठोकर पत्थर हासिल मंज़र आवाज़ मुहब्बत कदर उसूल नज़र शायरी


4361
ये सोचना ग़लत हैं,
कि तुमपर नज़र नहीं हैं;
मसरूफ़ हम बहुत हैं,
मगर बे-ख़बर नहीं हैं...!

4362
नज़रको नज़रकी ख़बर ना लगे
कोई अच्छा भी इस कदर ना लगे,
आपको देखा हैं बस उस नज़रसे,
जिस नज़रसे आपको नज़र ना लगे...!

4363
मैने दबी आवाज़में पूछा,
मुहब्बत करने लगी हो...
नज़रें झुकाकर,
वो बोली "बहुत"...

4364
ठोकर ना लगा मुझे पत्थर हीं हूँ मैं,
हैरतसे ना देख कोई मंज़र हीं हूँ मैं...
उनकी नज़रमें मेरी कदर कुछ भी हीं,
मगर उनसे पूछो जिन्हें हासिल हीं हूँ मैं...

4365
उसूलोंपे जहाँ आँच आये,
टकराना ज़रूरी हैं;
जो ज़िन्दा हों तो फिर,
ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी हैं...!
                                 वसीम बरेलवी

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