27 October 2017

1871 - 1875 दिलकी धड़कन प्यार इश्क़ चाहत ग़ज़ल नगमा दुनियाँ अफ़साने पसंद कीचड होसला चाँद दाग जज़्बा शायरी


1871
दुनियाँ बिलकुल वैसी ही हैं,
जैसे आप उसे देखना पसंद करते हो ...
चाहे तो कीचडमें "कमल" देख लो,
या चाँदपें "दाग"...!

1872
प्यार ग़ज़ल हैं गुनगुनानेके लिए,
प्यार नगमा हैं सुननेके लिए,
ये वो जज़्बा हैं जो सबको मिलता नहीं,
क्यूँकि होसला चाहिए प्यार निभानेके लिए...

1873
चाहतके ये कैसे अफ़साने हुए;
खुद नज़रोंमें अपनी बेगाने हुए;
अब दुनियाँकी नहीं कोई परवाह हमें;
इश्क़में तेरे इस कदर दीवाने हुए !!!

1874
मुझे किसी ग़ज़लसा लगता हैं,
ये नाम तुम्हारा ।
देखो तुम्हे याद करते करते,
मैं शायर बन गया ।।

1875
तेरी आवाज़ तेरे रूपकी पहचान हैं;
तेरे दिलकी धड़कनमें दिलकी जान हैं;
ना सुनूं जिस दिन तेरी बातें;
लगता हैं उस रोज़ ये जिस्म बेजान हैं।

25 October 2017

1866 - 1870 जिंदगी ख़ामोश ख्याल बेचैन करवट माहौल चाहत जिद्द आँख नाम अल्फाज निगाहे शायरी


1866
लोगोंने रोज़ ही,
नया कुछ माँगा खुदासे...
एक हम ही हैं जो तेरे,
ख्यालसे आगे न गये..!

1867
ख़ामोशसा माहौल और,
बेचैनसी करवट हैं ...!
ना आँख लग रही हैं और
ना रात कट रही हैं...!!!

1868
चाहत ये की वो मिल जाये,
जिद्द ये हैं की जिंदगीभरके लिए...!

1869
काँटोंका नामही बदनाम हैं...
चुभती तो निगाहेभी हैं...
अल्फाज तो यूँही बदनाम हैं...
चुभती तो अपनोंकी ख़ामोशी भी हैं.......

1870
किस हक़से माँगू अपने,
हिस्सेका वक़्त तुमसे;
क्यूंकि, न ये वक़्त मेरा,
न तुम मेरी.......!

1861 - 1865 जिंदगी मोहब्बत पैमाना सबूत शान बात दर्द मरहम ज़ख़्म नमक ख़ुशी ग़मो नश्तर हक़ीक़त शायरी


1861
काश कोई तो पैमाना होता,
मोहब्बतको नापनेका,
तो हम भी शानसे आते,
तेरे सामने सबूतके साथ !

1862
मेरे दर्दका मरहम न बन सको कोई बात नहीं,
मगर मेरे ज़ख़्मोंका नमक न बन जाना कभी,
मेरे साथ न चल सको तो कोई बात नहीं,
मगर मेरे पैरोंका नश्तर न बन जाना कभी ।।

1863
हक़ीक़त जिंदगीकी,
ठीकसे जब जान जाओगे,
ख़ुशीमें रो पड़ोगे और,
ग़मोमें मुस्कुराओगे...!

1864
नींदमें भी गिरने लगते हैं...
मेरी आँखसे आँसू...,
जब भी वो ख्वाबोंमें,
मेरा हाथ छोड़ देते हैं.......

1865
फैलने दो काजल,
ज़रा आँखोंसे...
ज़िंदगीमें हर चीज़,
सिमटी हुई अच्छी नहीं लगती...।

24 October 2017

1856 - 1860 ज़िन्दगी प्यास अक्सर सूखे होठ मीठी अल्फाज इंसान जेब रिश्ते हासिल कलम दास्ताँ शायरी


1856
अक्सर सूखे हुये होठोंसे ही,
होती हैं मीठी बाते,
प्यास बुझ जाए तो अल्फाज इंसान,
दोनों बदल जाया करते हैं...

1857
मेरी जेबमें जरासा,
छेद क्या हो गया,
सिक्कोंसे ज़्यादा तो,
रिश्ते गीर गये...

1858
सब कुछ हासिल नहीं होता,
ज़िन्दगीमें यहाँ,
किसीका "काश" तो,
किसीका "गर" छूटही जाता हैं...

1859
कैसे बयाँ करु अपनी दास्ताँ...
बस इतना कहता हूँ;
जब लिखता हूँ तब...
कलम रोती हैं ।

1560
वक्तकी क्या अजीब फितरत हैं ।
किसीका कटता नहीं और,
किसीके पास होता नहीं...।

18 October 2017

1851 - 1855 दिल गम वक़्त कुदरत नज़ारे प्यास दरियाँ किनारे आदत महंगी याद खुश शायरी


1851
कहीं पर गम,
तो कहीं पर सरगम,
ये सारे कुदरतके नज़ारे हैं...!
प्यासे तो वो भी रह जाते हैं,
जिनके घर दरियाँ किनारे हैं...!

1852
मुस्कुरानेकी आदत,
कितनी महंगी पड़ी मुझे... 
याद करना ही छोड़ दिया दोस्तोंने,
ये सोचकर कि मैं बहुत खुश हूँ...

1853
हम अपने रिश्तोंके लिए,
वक़्त नहीं निकाल सके...!
फिर वक़्तने हमारे बीचसे
रिश्ता ही निकाल दिया...!

1854
दिलमें चुभ जाएँगे,
जब अपनी ज़ुबाँ खोलेंगे...
हम भी अब शहरमें,
काँटोंकी दुका खोलेंगे.......

1855
"रिश्ते किसीसे कुछ यूँ निभा लो,
कि उसके दिलके सारे गम चुरा लो;
इतना असर छोड दो किसीपें अपना,
कि हर कोई कहे हमें भी अपना बना लो...

17 October 2017

1846 - 1850 दिल फर्ज कदम मिट्टी निशाँ बेवफ़ाई ग़म हालात जुदाई सज़ा उम्र तन्हाई ताना शायरी


1846
दुपट्टा भी अपना फर्ज,
निभा रहा हैं...
कोई चूम ना ले तेरी कदमोंकी मिट्टी,
शायद इसके निशाँ मिटा रहा हैं.......!

1847
चीज़ बेवफ़ाईसे बढ़कर, क्या होगी...
ग़म-ए-हालात, जुदाईसे बढ़कर क्या होगी...
जिसे देनी हो सज़ा, उम्रभरके लिए,
सज़ा तन्हाईसे बढ़कर, क्या होगी...

1848
याददाश्तका कमजोर होना,
इतनी भी बुरी बात नहीं,
बड़े बेचैन रहते हैं वो लोग,
जिन्हें हर बात याद रहती हैं...!

1849
घर बनाकर मेरे दिलमें,
वो चली गई हैं,
ना खुद रहती हैं,
ना किसी औरको बसने देती हैं...

1850
ये हवा भी अब,
ताना मारने लगी...!
कि तुम तड़पते रह गए,
और मैं उन्हें छू आई...!

13 October 2017

1841 - 1845 दिल ज़िन्दगी सीख मीठे झूठ दर्द अजीज़ ज़रूरत महसूस ख़ैरियत सिमट शायरी


1841
सीख रहा हूँ मैं भी अब,
मीठे झूठ बोलनेकी अदा,
कड़वे सचने हमसे,
जाने कितने अजीज़ छीन लिए...

1842
शायरीमें सिमटते कहाँ हैं,
दिलके दर्द दोस्तो.......
बहला रहे हैं खुदको,
जरा आप लोगोंके साथ.......

1843
बेख़बर हो गये हैं कुछ लोग,
जो हमारी ज़रूरत तक महसूस नहीं करते,
कभी बहुत बातें किया करते थे हमसे,
अब ख़ैरियत तक पूछा नहीं करते..

1844
ज़िन्दगीसे यहीं गिला हैं मुझे...
तू बहुत देरसे मिला हैं मुझे,
दिल धडकता नहीं सुलगता हैं...
क्या गंवाया हैं, क्या मिला हैं मुझे...

1845
जैसा मूड़ हो,
वैसा मंजर होता हैं...
मौसम तो,
इंसानके अंदर होता हैं...!

12 October 2017

1836 - 1840 प्यार मोहब्बत जमाने जिंदगी लम्हे साथ वक्त हवाला रात बात बरसात शायरी


1836
कुछ लम्हे गुजारे,
तूने मेरे साथ,
तुम उन्हें वक्त कहते हो,
और हम उन्हें जिंदगी कहते हैं !

1837
हमने गुज़रे हुए लम्होंका,
हवाला जो दिया...
हँसके वो कहने लगे,
रात गई बात गई . . .

1838
अगर मेरी चाहतोंके मुताबिक,
जमानेमें हर बात होती,
तो बस मैं होता वो होती,
और सारी रात बरसात होती...!

1839
तुम जिस रिश्तेसे,
आना चाहो, आ जाना,
मेरे चारो तरफ,
मोहब्बत ही मोहब्बत हैं...

1840
सुखे पत्तेसे प्यार कर लेंगे,
तुम्हारा ऐतबार कर लेंगे, 
तुम ये तो कहो की हम तुम्हारे हैं,
हम जिन्दगीभर इन्तजार कर लेंगे...

11 October 2017

1831 - 1835 दिल मोहोब्बत जिंदगी मुकाम खुशी लम्हा साँस इजाज़त ख्वाब आँख इजहार मुश्किल एहसास शायरी


1831
तुम्हे रखा हैं,
दिलके उस मुकामपर...
जहाँ मैं अपनी साँसोंको भी,
जानेकी इजाज़त नहीं देता.......

1832
ख्वाब आँखोंसे गए और,
नींद रातोंसे गयी,
वो जिंदगीसे गए और,
जिंदगी हाथोंसे गयी...

1833
मानते हैं सारा जहाँ तेरे साथ होगा;
खुशीका हर लम्हा तेरे पास होगा;
जिस दिन टूट जाएँगी साँसे हमारी;
उस दिन तुझे हमारी कमीका एहसास होगा।

1834
बडी मुश्किलमें हूँ कैसे इजहार करू,
वो तो  खुशबु  हैं उसे  कैसे  गिरफ्तार करू...
उसकी मोहोब्बतपर मेरा हक नहीं,
लेकिन दिल कहता हैं,
आखरी साँस तक उसका इन्तजार करूं...

1835
उसकी आँखोंमें नज़र आता हैं,
सारा जहाँ मुझको . . .
अफ़सोस कि उन आँखोंमें,
कभी खुदको नहीं देखा . . . !

10 October 2017

1826 - 1830 नजर बात तलाश बेताब मुस्कुराहट प्यास नाम कसर जान चाह ख्वाहिश शायरी


1826
ये नजरनजरकी बात हैं,
कि किसे क्या तलाश हैं...!
वो  हँसनेको बेताब हैं,
मुझे उनकी मुस्कुराहटोंकी प्यास हैं...!!!

1827
तेरी ख्वाहिशोंके नाम,
चल मैं खुदको करता हूँ...
तू एक ख्वाहिश...
बस मेरे नाम कर दे .......!

1828
खुदा जाने कौनसी,
कसर रह गयी थी उसे चाहनेमें...
वो जान ही ना पायी...
मेरी जान हैं वो.......!

1829
बहुत मुश्किलसे होता हैं ,
तेरी याँदोंका कारोबार ;
मुनाफा तो नहीं हैं लेकिन ,
गुज़ारा हो ही जाता हैं.......

1830
जब दर्द होता हैं...
वो बहुत याद आते हैं,
जब वो याद आते हैं...
बहुत दर्द होता हैं...।

9 October 2017

1821 - 1825 दिल मुहब्बत दुनियाँ ज़ख्म शीशे कमाल हासिल धोखा बयाँ महफ़िल बेहिसाब शायरी


1821
मुझे भी शीशे जैसा
कमाल हासिल हैं;
अगर मैं टूटता हूँ,
तो बेहिसाब होता हूँ...

1822
कहाँ कोई ऐसा मिला, जिसपर हम दुनियाँ लुटा देते,
हर एकने धोखा दिया, किस-किसको भुला देते,
अपने दिलका ज़ख्म, दिलमें ही दबाये रखा,
बयाँ करते, तो महफ़िलको रुला देते...

1823
बेवफाओंकी इस दुनियाँमें
संभलकर चलना मेरे दोस्तों;
यहाँ बर्बाद करनेके लिए,
मुहब्बतका सहारा लेते हैं लोग...

1824
बड़ी मुद्दतसे चाहा हैं तुझे !
बड़ी दुआओंसे पाया हैं तुझे !
तुझे भुलानेकी सोचूं भी तो कैसे ! 
किस्मतकी लकीरोंसे चुराया हैं तुझे !!!

1825
हम तो वो हैं जो तेरी,
बातें सुनकर तेरे हो गए थे,
वो और होंगे जिन्हे,
मोहब्बत चेहरेसे होती हो...

7 October 2017

1816 - 1820 मोहब्बत जिन्दगी बेवजह मुस्कुरा मकसद साथ खामोश चेहरे पहरे आँख ज़ख़्म गहरे चाहत रूठ बारिश शायरी


1816
मुस्कुरानेके मकसद न ढूँढ,
वर्ना जिन्दगी यूँ ही कट जाएगी,
कभी बेवजह भी मुस्कुराके देख,
तेरे साथ साथ जिन्दगीभी मुस्कुरायेगी !

1817
खामोश चेहरेपर हज़ारों पहरे होते हैं,
हँसती आँखोंमें भी ज़ख़्म गहरे होते हैं,
जिनसे अक्सर रूठ जाते हैं हम,
असलमें उनसे ही रिश्ते गहरे होते हैं...

1818
मोहब्बत तो वो बारिश हैं,
जिसे छूनेकी चाहतमें;
हथेलियाँ तो गीली हो जाती हैं,
पर हाथ खालीही रह जाते हैं.......

1819
हमें अक्सर उनकी जरुरत होती हैं,
जिनके लिए हम जरुरी नहीं होते...

1820
कारवाँ-ए-ज़िन्दगी...
हसरतोंके सिवा,
कुछभी नहीं...
ये किया नहीं,
वो हुआ नहीं,
ये मिला नहीं,
वो रहा नहीं...

6 October 2017

1811 - 1815 मोहब्बत तन्हाई परछाई लब चाह पलक कदर फ़रियाद चाँद चुपके याद उम्मीद अजनबी रख्खुं शायरी


1811
इस कदर हर तरफ तन्हाई हैं,
उजालोमें अंधेरोंकी परछाई हैं,
क्या हुआ जो गिर गये पलकोंसे आँसू,
शायद याद उनकी चुपकेसे चली आई हैं...

1812
न चाहकर भी मेरे लबपर,
फ़रियाद आ जाती हैं,
ऐ चाँद, सामने न आ,
किसीकी याद आ जाती हैं !

1813
चलो इकबार फिरसे,
अजनबी बन जाये हम दोनों;
न मै तुमसे कोई उम्मीद रख्खुं,
ना तुम...

1814
तेरी मोहब्बतको कभी खेल नहीं समजा
वरना खेल तो इतने खेले हैं की कभी
हारे नहीं .....

1815
लौट आके मिलते हैं,
फिरसे अजनबीकी तरह,
तुम हमारा नाम पूछलो और...
हम तुम्हारा हाल पूछते हैं.......!