3201
वो सज़दा ही क्या,
जिसमें सर उठानेका होश रहे...
इज़हारे
इश्क़का मज़ा
तो तब हैं,
जब मैं खामोश
रहूँ और तू
बैचेन रहे...!
3202
पढलु ना दिलका दर्द कहीं,
अल्फाज बदल लेते
हो तुम;
आँखोंमें नमीं
आ जाए तो,
आवाज बदल लेते
हो तुम...
गुलजार
3203
लोग सौ रंग
बदलते हैं,
हसीन चेहरेको लुभानेके लिए;
और हम हसीन चेहरे बहाते हैं,
एक चेहरेको भुलानेके लिए...
3204
अब ये न
पूछना की,
ये
अल्फ़ाज़ कहाँसे
लाता हूँ...
कुछ चुराता हूँ दर्द
दूसरोंके,
कुछ
अपना हाल सुनाता
हूँ.......
3205
इश्कका रंग,
और भी गुलनार
हो जाता हैं...!
जब दो शायरोको,
एक दूसरेसे प्यार हो
जाता हैं.......!