5421
दिल खामोश हैं, मगर
होंठ हँसा करते
हैं,
बस्ती वीरान, हैं मगर
लोग बसा करते
हैं...
नशा मयकदों में अब
कहाँ हैं यारों,
लोग अब मय
का नहीं,
मैं का नशा
करते हैं...
5422
दबे होंठोंको बनाया हैं,
सहारा अपना...
सुना हैं कम
बोलने,
बहुत कुछ सुलझ
जाता हैं...
5423
भले ही उसूल
हमेशा,
खुदसे ऊपर रखना...
पर रिश्तोमें जरा झुकनेका,
जिगर रखना...!
5424
आँखोंमें
पानी रखो, होंठोंपे
चिंगारी रखो,
जिन्दा रहना हैं
तो तरकीबे बहुत
सारी रखो,
राहके पत्थरसे बढ़ के
कुछ नहीं है
मंजिले,
रस्ते आवाज देते
है सफ़र जारी
रखो...
5425
उसके मीठे होंठ,
और मैं शुगरका मरीज,
तुम ही बताओ
साहब,
हम परहेज़ करते या
प्यार...