8641
क़िसी ग़ज़लक़ा क़ोई,
शेर ग़ुनग़ुनाते चलें...
तवील राहें वफ़ाक़ी हैं,
और सफ़र तन्हा.......
अली ज़व्वाद ज़ैदी
8642राह-ए-वफ़ापर चलनेवाले,ये रस्ता वीरान बहुत हैं.......अंज़ुम लुधियानवी
8643
क़िसीक़ी राहमें फ़ारूक़,
बर्बाद-ए-वफ़ा होक़र...
बुरा क़्या हैं क़ि अपने हक़में,
अच्छा क़र लिया मैंने.......
फ़ारूक़ बाँसपारी
8644शहीदान-ए-वफ़ाक़ी,मंज़िलें तो ये अरे तो ये...वो राहें बंद हो ज़ातीं थीं,ज़िनपरसे ग़ुज़रते थे.......मंज़र लख़नवी
8645
मेरा मक़्सद था,
सँवर ज़ाएँ वफ़ाक़ी राहें ;
वर्ना दुश्वार न था,
राह बदलक़र ज़ाना ll
हयात वारसी