8 June 2017

1384 दिल दुनियाँ रस्म उल्फ़त सिख आग कयामत वक्त रुखसत हंसते रुला शायरी


1384
रस्म-ए-उल्फ़त सिखा गया कोई,
दिलकी दुनियाँपें छा गया कोई... 

ता कयामत किसी तरह न बुझे,
आग ऐसी लगा गया कोई... 

दिलकी दुनियाँ उजड़ीसी क्युँ हैं,
क्या यहांसे चला गया कोई... 

वक्त-ए-रुखसत गले लगाकर दाग़.
हंसते-हंसते रुला गया कोई...!

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