26 June 2017

1436 - 1440 सौदा अदब खरीद मीठे झूठ बोल कड़वे सच अज़ीज़ छीन ख़्वाहिशें ख़्वाब परिंदे शाम शायरी


1436
कोई तो मिला जिसने,
सौदा करना सिखा दिया...
वर्ना बड़े अदबसे,
हर चीज खरीद लेता था...!

1437
सीख रहा हूँ मैं भी, अब...
मीठे झूठ बोलनेकी कला...!
कड़वे सचने हमसे, ना जाने...
कितने अज़ीज़ छीन लिए.....॥

1438
ख़्वाहिशें जो चल न सकी जमीं पर,
ख़्वाबोंके परिंदे बन लौट आई हैं...
शाम ढलनेपर !!!

1439
उड़ा भी दो सारी रंजिशें,
इन हवाओंमें यारों,
छोटीसी जिंदगी हैं
नफ़रत कब तक करोगे ?

1440
जहाँमें कुछ सवाल,
जिंदगीने ऐसे भी छोडे हैं,
जिनका जवाब हमारे पास...
सिर्फ खामोशी हैं !!!

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