13 June 2017

1392


क्यों डरें कि ज़िंदगी में क्या होगा;
हर वक़्त क्यों सोचें कि बुरा होगा;
बढ़ते रहें मंज़िलों की ओर हम;

कुछ ना मिला तो क्या हुआ,
तज़ुर्बा तो नया होगा...।

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