18 June 2017

1406 - 1410


1406
वो रोज़ देखता है
डूबते सूरज को इस तरह,
काश मैं भी किसी
शाम का मंज़र होता ।

1407
कभी मुझ को साथ लेकर,
कभी मेरे साथ चल के,
वो बदल गए अचानक,
मेरी ज़िन्दगी बदल के।

1408
बहुत अंदर तक,
तबाही मचा देता है ।
वो आँसू जो,
आँख से बह नही पाता.......

1409
गर्मी तो बोहत बढ़ रही है।
फिर भी उनका दिल
पिघल ने का नाम ही
नहीं ले रहा.......

1410
युं तो गलत नही होते
अंदाज चहेरों के;
लेकिन लोग...
वैसे भी नहीं होते,

जैसे नजर आते है...!

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