25 June 2017

1431 - 1435 दिलजिंदगी वजूद मौत मोहोलत कमजोर दिवार वास्ता ख़बर नज़र गैर हाल शायरी


1431
अपने वजूदपर,
इतना न इतरा ऐ-जिंदगी,
वो तो मौत हैं...
जो तुझे मोहोलत देती जा रही हैं ।

1432
लूट लेते हैं अपने ही,
वरना गैरोंको क्या पता,
की दिलकी दिवार,
कहाँसे कमजोर हैं...।

1433
वास्ता नहीं रखना तो;
नज़र क्यों रखती हो,
किस हालमें हूँ ज़िंदा,
ये ख़बर क्यों रखती हो...

1434
घड़ी-घड़ी वो,
हिसाब करने बैठ जाते हैं l
जबकि पता हैं,
जो भी हुआ, बेहिसाब हुआ.......!

1435
युँही किसीकी यादमें रोना फ़िज़ूल हैं,
इतने अनमोल आँसू खोना फ़िज़ूल हैं,
रोना हैं तो उनके लिये जो हमपें निसार हैं,
उनके लिये क्या रोना जिनके आशिक़ हज़ार हैं...!

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