4211
खामोशीसे बनाते
रहो,
पहचान अपनी...
हवाएँ खुदखुद गुनगुनाएगी,
नाम
तुम्हारा.......!
4212
आँखोंकी भाषा
पढना सीखो,
खामोशीको चुपकेसे सुनना सीखो;
शब्द बिना बोले
लबसे,
जुबांकी भाषा
समझना सीखो...
4213
कतारें थककर भी
खामोश हैं,
नजारे
बोल रहे हैं;
नदी बहकर भी
चुप हैं,
मगर
किनारे बोल रहे हैं;
ये कैसा जलजला
आया हैं इन दिनों...
झोंपडी मेरी खडी हैं,
महल उनके
डोल रहे हैं...
4214
खामोश रहती हैं वो तितली,
जिसके
रंग हज़ार हैं...
और शोर करता
रहा वो कौवा,
ना जाने किस
गुमानपर.......!
4215
इतने भी खामोश
क्यों बैठे हो
यारों...
बारिश खत्म हुई हैं
मोहब्बतमें
बर्बादी तो,
अब
भी जारी हैं.......
No comments:
Post a Comment