4266
चलो मान लिया,
नहीं आता हमे,
इजहार-ए-इश्क़ करना...
पर शायरियोंको,
ना समझ सको...
इतने नादाँ तो
तुम भी नहीं...!
4267
कुछ मुड़े - मुड़ेसे
हैं,
किताब-ए-इश्क़के
पन्ने...
ये
कौन हैं.......
जो हमारे बाद पढता
हैं...!!!
4268
आतिश-ए-इश्क़
वो जहन्नुम हैं,
जिसमें फिरदौसके नजारे
हैं...
4269
इश्क़में जिसने भी,
बुरा
हाल बना रखा
हैं ।
वहीं कहता हैं अजी,
इश्कमें क्या
रखा हैं ।।
4270
हम भी बिकने
गए थे,
बाज़ार-ऐ-इश्क़में फराज...
क्या पता था,
वफ़ा करने वालोको...
लोग खरीदा नहीं करते.......
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