4241
लबोपर लफ्ज़
भी अब,
तेरी तलब लेकर
आते हैं...
तेरे जिक्रसे महकते
हैं और,
तेरे सजदेमें
बिखर जाते हैं...!
4242
वो इत्रकी
शिशीयाँ,
बेवजह इतराती हैं खुदपर...!
हम तो तेरे ख्यालोंसे ही,
महक जाते हैं.......!!!
4243
किसी गुलाबसे कोई,
मतलब नहीं मुझे...
आप और सिर्फ
आप ही,
महकते हो मुझमें...!
4244
काँटोंको गाली
दे रहे हो
जनाब...
लगता हैं फूलोकी महकसे,
आपकी मुलाकात नहीं हुई...
4245
झूठ कहते हैं
कि,
संगतका हो
जाता हैं असर...
काँटोंको तो
आज तक,
महकनेका सलीका
नहीं आया...!
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