13 May 2019

4241 - 4245 लफ्ज़ इत्र जिक्र तलब बेवजह ख्याल फूल काँटे झूठ मुलाकात संगत महक शायरी


4241
लबोपर लफ्ज़ भी अब,
तेरी तलब लेकर आते हैं...
तेरे जिक्रसे महकते हैं और,
तेरे सजदेमें बिखर जाते हैं...!

4242
वो इत्रकी शिशीयाँ,
बेवजह इतराती हैं खुदपर...!
हम तो तेरे ख्यालोंसे ही,
महक जाते हैं.......!!!

4243
किसी गुलाबसे कोई,
मतलब नहीं मुझे...
आप और सिर्फ आप ही,
महकते हो मुझमें...!

4244
काँटोंको गाली दे रहे हो जनाब...
लगता हैं फूलोकी महकसे,
आपकी मुलाकात नहीं हुई...

4245
झूठ कहते हैं कि,
संगतका हो जाता हैं असर...
काँटोंको तो आज तक,
महकनेका सलीका नहीं आया...!

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