20 May 2019

4276 - 4280 साझा गजब सजा जुर्म बरकत हासिल याद तड़प इश्क़ शायरी


4276
गर हो जाए इश्क़...
तो हमसे साझा कर लेना। 
कुछ हम रख लेंगे...
कुछ तुम रख लेना।।

4277
इश्क़से बचके रहो,
गजबका काजी हैं...
खुद ही देता हैं सजा,
जुर्म करवा - करवाके.....

4278
बङी बरकत हैं,
तेरे इश्क़में...
जबसे हुआ हैं,
बढता ही जा रहा हैं...!

4279
मालूम था, मालूम हैं की,
कुछ भी नहीं हासिल होगा...
लेकिन,
वो इश्क़ ही क्या जिसमें,
ख़ुदको तड़पाया ना जाये.....

4280
कितने दिन गुजर गए और तुमने...
याद तक ना किया...
मुझे नहीं पता था की,
इश्क़में छुट्टिया भी होती हैं.......!

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