24 May 2019

4291 - 4295 नजरअंदाज बेरूखी दर्द मेहमान नवाजी होंठ कारोबार इबादत इश्क़ शायरी


4291
इश्क़ हैं उनसे इसलिए,
नजरअंदाज नहीं किया कभी...
वरना बेरूखी उनसे कहीं,
बेहतर जानते हैं हम.......!

4292
माना की तेरे दरपे हम,
खुद चलकर आये थे  इश्क़...
लेकिन दर्द और सिर्फ दर्द,
ये कहाँ की मेहमान नवाजी हैं...?

4293
सूखेसे वो दो होंठ,
चायकी वो भरी प्याली...
इश्क़ देखना हैं,
तो कभी इन्हें टकराते देखिये...!

4294
घाटे और मुनाफेका,
बाज़ार नहीं...
इश्क़ एक इबादत हैं,
कारोबार नहीं.......!

4295
बहुत लाज़मी था,
उनका मग़रूर हो जाना...
इश्क़ नही इबादत उनकी,
कर बैठे थे हम.......

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