4296
लकीरें तो हमारीभी,
बहुत ख़ास
हैं...
तभी तो तू,
हमारे पास हैं...!
4297
जख्मी हथेलियोंका सबब,
ना पूछो क्या
हैं...
एक लकीर खींची
हैं,
तुम्हें पानेके खातिर.......!
4298
हाथकी लकीरें
भी,
कितनी अजीब
हैं...
हाथके अन्दर
हैं,
पर काबूसे बाहर...!
4299
उल्फतकी जंजीरसे डर लगता
हैं,
कुछ अपनी ही
तकदीरसे डर
लगता हैं;
जो जुदा करते
हैं किसीको
किसीसे...
हाथकी बस
उसी लकीरसे
डर लगता हैं...
4300
अजीबसी पहेलियाँ
हैं,
मेरे हाथोंकी लकीरोंमें...।
लिखा तो हैं सफ़र मगर,
मंज़िलका निशान नहीं...।।
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