3391
भूल जाना था
तो फिर,
अपना बनाया क्यूँ था...
तुमने उल्फ़तका यकीं,
मुझको दिलाया क्यूँ था...?
3392
ख़ुद्दारी
वजह रहीं कि,
ज़मानेको कभी...
हज़म नहीं हुए
हम,
पर ख़ुदकी
नज़रोंमें,
यकीं
मानो...
कभी
कम नहीं हुए
हम...!
3393
परखसे परे
हैं,
ये शख्शियत मेरी...
मैं उन्हींका हूँ,
जो मुझपें यकीं रखते हैं...!
3394
दिलके हर
कोनेमें,
बसाया
हैं आपको;
अपनी यादोंमें हरपल,
सजाया हैं आपको;
यकीं न हो
तो,
मेरी आँखोंमें देख लीजिये;
अपने अश्कोंमें भी,
छुपाया हैं आपको...!
3395
शकका कोई,
इलाज नहीं होता,
जो यकीं करता
हैं,
कभी नाराज
नहीं होता,
वो पूछते हैं हमसे...
कितना प्यार करते
हो...?
उन्हे क्या पता,
मोहब्बतका हिसाब
नहीं होता.......!