8 October 2018

3391 - 3395 मोहब्बत प्यार दिल याद उल्फ़त यकीं आँख ख़ुद्दारी वजह अश्क शक इलाज नाराज शायरी


3391
भूल जाना था तो फिर,
अपना बनाया क्यूँ था...
तुमने उल्फ़तका यकीं,
मुझको दिलाया क्यूँ था...?

3392
ख़ुद्दारी वजह हीं कि,
ज़मानेको कभी...
हज़म नहीं हुए हम,
पर ख़ुदकी नज़रोंमें,
यकीं मानो...
कभी कम नहीं हुए हम...!

3393
परखसे परे हैं,
ये शख्शियत मेरी...
मैं उन्हींका हूँ,
जो मुझपें यकीं रखते हैं...!

3394
दिलके हर कोनेमें,
बसाया हैं आपको;
अपनी यादोंमें हरपल,
सजाया हैं आपको; 
यकीं हो तो,
मेरी आँखोंमें देख लीजिये;
अपने अश्कोंमें भी,
छुपाया हैं आपको...!

3395
शकका कोई,
इलाज नहीं होता,
जो यकीं करता हैं,
कभी नाराज नहीं होता,
वो पूछते हैं हमसे...
कितना प्यार करते हो...?
उन्हे क्या पता,
मोहब्बतका हिसाब नहीं होता.......!

7 October 2018

3386 - 3390 जख्म गुनाह हिसाब तकदीर अजीब चीज जज्बात गजल नज्म काबिल लफ्ज़ कलम शायरी


3386
कुछ लोग मेरी कलमसे,
सिते हैं अपने जख्म...
कुछ लोगोंको मैं चुभता हूँ,
एक नोककी तरह.......!

3387
तू मुझसे,
मेरे गुनाहोंका,
हिसाब ना मांग... मेरे खुदा,
मेरी तकदीर लिखनेमें,
कलम तो तेरी ही चली थी.......!
  
3388
कलम भी क्या,
अजीब चीज हैं...
खुदको खाली करके,
किसीके जज्बातोको भरती हैं...!

3389
सुनकर गजल मेरी,
वो अंदाज बदलकर बोले,
कोई छीनो कलम इससे...
ये तो जान ले रही हैं.......

3390
काबिल नहीं इतना,
की आपपर कुछ लफ्ज़ लिखूँ;
जो खुद गजल हो,
उस पर क्या मैं कोई नज्म लिखना.......!

6 October 2018

3381 - 3385 इश्क मोहब्बत दर्द अहसान बयान जुबान वाकिफ़ जज्बात हिदायत दफ्तर कलम शायरी


3381
 मेरी कलम इतनासा
अहसान कर दे...
कह ना पाई जो जुबान
वो बयान कर दे.......!


3382
इस कदर वाकिफ़ हैं,
मेरी कलम, मेरे जज़्बातोंसे;
अगर मैं 'इश्कलिखना भी चाहूँ...
तो तेरा नाम लिखा जाता हैं !!!


3383
कैसे कह दूँ अपनी कलमसे,
कि रोना बंद कर दे...
मोहब्बतकी हैं जनाब,
दर्द फूटफूटकर निकलेंगे...

3384
इश्क़ होना भी लाज़मी हैं,
शायरी लिखनेके लिए...
वरना... कलम ही लिखती,
तो हर दफ्तरका बाबू, ग़ालिब होता.......!

3385
आज फिरसे कलम,
हिदायत दे रहीं हैं दर्द ना लिखनेकी...
लगता ये भी थक गई हैं,
मेरा दर्द छुपाते- छुपाते.......!

5 October 2018

3376 - 3380 दिल मोहब्बत आरजू बेवफा नसीब गजब खंजर बाँहोमें शायरी


3376
आरजू थी की तेरी,
बाँहोमें दम निकले...
लेकिन बेवफा तुम नहीं,
बदनसीब हम निकले...

3377
ले चल कहीं दूर मुझे,
तेरे सिवा जहाँ कोई ना हो...
बाँहोमें सुला लेना मुझको,
फिर कोई सवेरा ना हो.......

3378
गजबकी चीज होती हैं,
शायरी लिखना...
खुदके खंजरसे,
खुदकी खुदाई लिखना.......!

3379
गजबकी ख़रीददारी,
की उन्होंने हमसे;
वो हमारी बाँहोमें आये,
और हम बिक गए.......!

3380
ना ढूंढ मोहब्बत  बाजारोंमें,
ये कहीं बिकती नहीं;
ये रहती हैं दिलोंमें,
पर बेकदरोंको ये दीखती नहीं...!

4 October 2018

3371 - 3375 जिंदगी दर्द सनम शराब नक़ाब गुमराह नज़र सफ़र फासला महफ़िल क़यामत शायरी


3371
दर्द...
कुछ तो कम कर,
मैं तेरा...
रोजका ग्राहक हूँ.......

3372
मत रख बहते पानीमें,
अपने पाँव सनम...
के सारा दरीया,
शराब हो जायेगा.......!

3373
चुपचाप चल रहा था,
जिंदगीके सफ़रमें...
तुमपर नज़र पड़ी और,
मैं गुमराह हो गया.....!!!

3374
अगर देखनी हैं क़यामत तो,
चले आओ हमारी महफ़िलमें...
सुना हैं आज महफ़िलमें,
वो बेनक़ाब आनेवाली हैं.......!

3375
ठुकराया हमने भी,
बहुतोंको हैं... तेरी खातिर,
तुझसे फासला भी शायद...
उनकी बददुआओंका असर हैं...

3 October 2018

3366 - 3370 उम्मीद दामन कामयाबी मुसीबत याद मतलब आदतें शौक ख्वाब दौर पत्थर हौसला शायरी


3366
उम्मीदोंका दामन थाम रहे हो,
तो "हौसला" कायम रखना...
क्योकि...
जब नाकामियाँ "चरम" पर हों,
तो "कामयाबी" बेहद करीब होती हैं...!

3367
मुझे किसीको मतलबी,
कहनेका कोई हक़ नहीं;
मैं तो खुद अपने रबको,
मुसीबतोंमें याद करता हूँ !

3368
आदतें खराब नहीं,
शौक बस ऊंचे हैं...!
वरना ख्वाबकी,
इतनी औकात नहीं,
कि हम देखें,
और पूरा हो.......!

3369
तारीख हजार सालमें,
बस इतनीसी बदली हैं...
तब दौर पत्थरका था,
अब लोग पत्थरके हैं...!

3370
कैसे कह दूँ कि,
थक गया हूँ मैं;
जाने किस-किसका,
हौसला हूँ मैं.......!

2 October 2018

3361 - 3365 दिल दुनियाँ काश अक्सर रिश्ता नाम सब्र परदा हथेली इंतज़ार हैरत हैरान शायरी


3361
अक्सर पुछते हैं लोग,
किसके लिए लिखते हो;
अक्सर कहता हैं दिल,
"काश कोई होता..."

3362
कुछ रिश्तोंके नाम हीं होते...
और कुछ रिश्ते नामके ही होते हैं...!

3363
दुनियाँ समझ हीं हैं,
मैने परदा किया हैं...
सच ये हैं तुझे बसाके इन नैनोमें,
हमने तुझको दुनियाँसे छुपा लिया हैं...!

3364
बड़ी हैरतमें हैं,
मेरी हथेलीको देखनेवाले...
तेरे नामके सिवा और कुछ,
नजरही नहीं आता...!

3365
मैं खुद हैरान हूँ,
अपने सब्रका पहलू देखकर...
उसने याद करना छोड़ दिया,
मुझे इंतज़ार उसका आज भी हैं...!

1 October 2018

3356 - 3360 दिल इश्क ज़िंदगी पलक कदर आँसू दर्द रिश्ते तन्हाई आसान तबाही अरमान शायरी


3356
पलकोंमें आँसू और,
दिलमें दर्द सोया हैं,
हँसने वालोंको क्या पता,
रोनेवाला किस कदर रोया हैं...
ये तो बस वो ही जान सकता हैं,
मेरी तन्हाईका आलम,
जिसने ज़िंदगीमें...
किसीको पानेसे पहले खोया हो !

3357
आखिर किस कदर खत्म कर सकते हैं,  
हम उनसे रिश्ते...
जिनको सिर्फ महसूस करनेसे,
हम दुनियाँ भूल जाते.......!

3358
आसान  कदर हैं,
समझ लो मेरा पता...
बस्तीके बाद पहला,
जो वीराना आएगा...!

3359
किस कदर बेदर्द,
हो गया हैं ये इंसान;
टूटते तारेसे कहे,
पूरे करदे मेरे अरमान.......!

3360
जिधर देखो उधर,
शायर बिखरे पड़े हैं...
इश्क, देख तूने किस कदर...
तबाही मचा रखी हैं.......!

30 September 2018

3351 - 3355 दिल महोब्बत दुनियाँ आजाद आँसू खास बात मेहमान उदासी दर्द हँसी तलाश शायरी


3351
महोब्बत करने बालोंकी,
कमी नहीं हैं दुनियाँमें...
अकाल तो,
निभाने वालोका पड़ा हैं !!!

3352
"रातको आजाद हो जाते हैं,
जाने किस तरह;
सारा दिन रखता हूँ,
मैं तो आँसू बाँध कर.......!"

3353
कुछ तो खास बात हैं,
मेरी मेहमाननवाजीमें,
उदासी आई ठहर गई,
दर्द आया रुक गया...

3354
हँसीको एक खूँटीपर,
टाँग रक्खा हैं...l
घरसे निकलती हूँ,
तो पहन लेती हूँ.......

3355
अपने दिलकी ज़मींपें,
तलाश कर मुझे,
अगर वहां नहीं...
तो कहीं नहीं मैं;
मोहब्बत हूँ तेरे अहसासोंमें,
नही तो फिर कहीं भी नहीं हूँ मैं...!

29 September 2018

3346 - 3350 ज़िन्दगी तराजू तरक्की दावा बेकार वक्त किताबों कमबख्त नशा ठोकर दबदबा हुकूमत शायरी


3346
सबको उसी तराजूमें तोलिए,
जिसमें खुदको तोलते हो;
फिर देखना लोग उतने भी बुरे नहीं होते,
जितना हम समझते हैं.......!

3347
ज़िन्दगीको इतना,
सस्ताभी मत बनाओ दोस्तों,
के दो कौड़ीके लोग,
खेल कर चले जाये.......!

3348
गिर रहा हैं दिन दिन,
इंसानियतका स्तर...
और इंसानका दावा हैं,
कि हम तरक्कीपर हैं.......!

3349
"बेकार ज़ाया किया,
वक्त किताबोंमें...
सारे सबक तो कमबख्त,
ठोकरोंसे मिले हैं......."

3350
ये दबदबा, ये हुकूमत,
ये नशा, ये दौलते,
सब किरायेदार हैं,
घर बदलते रहते हैं.......!

3341 - 3345 दिल ज़िंदगीअंदाज मुलाकात रिश्ता तरस इन्सान बेबसी आहिस्ता मंज़िल शायरी


3341
हम मरेगें भी तो,
उस अंदाजसे...
जिस अंदाजमें लोग,
जीनेको भी तरसते हैं.......! 

3342
कुछ रिश्तोमें,
इन्सान अच्छा लगता हैं,
और कुछ इन्सानोंसे,
रिश्ता अच्छा लगता हैं...


3343
दिल साफ करके,
मुलाकातकी आदत डालो;
धूल हटती हैं तो,
आईने भी चमक उठते हैं.......

3344
समंदर अपनी बेबसी,
किसीसे कह नहीं सकता;
हजारों मील तक फैला हैं,
फिर भी बह नहीं सकता...

3345
ज़िंदगी,
बहुत तेज़ हैं रफ़्तार तेरी,
थोड़ा आहिस्ता चल,
समझने तो दे...
ये पड़ाव हैं या हैं मंज़िल मेरी.......