5751
देख तू सबा
बनकर,
गर्म धूप भी
बनकर देख;
कभी आफ़ताबसा तेज़ तो
हो,
कभी चाँदनी बन लिपटकर
देख...!
5752
धूप छूती हैं
बदनको,
जब शमीम...
बर्फ़के
सूरज,
पिघल जाते हैं
क्यूँ...
फ़ारूक़
शमीम
5753
कामयाबी-ए-सफ़रमें,
धूप बड़ी काम
आई...
छांव अगर होती
तो,
सो गये होते.......!
5754
मैं अपने आँगनमें,
बस उतनी ही
धूप चाहता हूँ...
जिसमें मेरे ख़्याल,
सूखने न पायें...!
5755
धूप सा रंग हैं और,
खुद हैं वो छाँवो
जैसा...!
उसकी पायलमें,
बरसातका मौसम
छनके...!!!
क़तील शिफ़ाई